गरियाबंद जिले में जन्माष्टमी महोत्सव को खूब हर्षोल्लास से मनाई गई

गरियाबंद जिले में जन्माष्टमी महोत्सव को खूब हर्षोल्लास से मनाई गई

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✍🏻”लोकहित 24 न्यूज़ एक्सप्रेस लाइव” जिला ब्यूरो चीफ– चरण सिंह क्षेत्रपाल की रिपोर्ट गरियाबंद (छत्तीसगढ़)

 

गरियाबंद जिले में जन्माष्टमी महोत्सव को खूब हर्षोल्लास से मनाई गई

गरियाबंद–: -आज 26 अगस्त 2024// को श्रीकृष्ण जी के जन्मोत्सव पर छत्तीसगढ़ में आस्था और विश्वास से जन्मोत्सव को मनाया जाता है। जिसे यहां के लोग बड़े धूमधाम से मनाते हैं। जन्माष्टमी महोत्सव से है, और इस त्यौहार का मुख्य उद्देश्य है मनुष्य में आस्था और विश्वास को जगाने तथा मन में सकारात्मक बदलाव और अटूट विश्वास से यह धार्मिक पर्व को मनायें जाने वाली जन्माष्टमी महोत्सव है, इससे मानवीय मूल्यों को बनाए रखने में महत्व उजागर करना है। यह त्यौहार मुख्यतः कृषि प्रधान समाज के लिए समर्पित है, जहां माता एवं बहनें अपने कामनाओं की व अच्छी और समृद्धि की कामना करते हैं। पूरे छत्तीसगढ़ सहित गरियाबंद ज़िले में आज सोमवार को जन्माष्टमी महोत्सव को उत्साह के साथ मनाया गया।
छत्तीसगढ़ की संस्कृति और परंपरा को जीवंत रखने में हरेली तिहार का महत्वपूर्ण योगदान है। यह त्यौहार धार्मिक अनुष्ठान का प्रतीक है, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक एकता का भी प्रतीक है। जिससे लोगों के मन में आस्था और विश्वास से सकारात्मक विचार धारा आए,इसके माध्यम से लोग अपने पूर्वजों की धरोहर और परंपराओं के अनुसार मनाते आ रहे हैं। और आने वाली पीढ़ियों को भी इससे अवगत कराते हैं। इस प्रकार, जन्माष्टमी महोत्सव को छत्तीसगढ़ की संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है और इसे बड़े हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है। इस मौके पर मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय ने इस बार जन्माष्टमी पर्व पर लोगों को बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं दी हैं।

*त्यौहार की तैयारी
जन्माष्टमी महोत्सव इस दिन गांवों में विशेष सफाई और सजावट की जाती है। घरों के आंगनों को आम पत्तियों और गोबर से लिपाई पुताई की जाती है, जो शुभता और समृद्धि का प्रतीक है।
धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियां
जन्माष्टमी महोत्सव के दौरान लोग पारंपरिक वेशभूषा पहनते हैं और विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों में भाग लेते हैं। सबसे प्रमुख अनुष्ठान राधा कृष्ण की पूजा’ है, जिसमें श्रृद्धालु भक्त जन अपने घरों और मंदिरों में भी पूजा करते हैं। वे रात को हरिवंश पुराण व जन्माष्टमी की कथा प्रवचन सुनाई जाती हैं ,और भगवान से प्रार्थना करते हैं। इस पूजा के दौरान बाल गोपाल के छोटे मूर्ति को अपने घरों में सजाया जाता है, और उन पर दूध,दही घी शहद और मक्खन से स्नान कराकर राज मुकुट सिर में पहना कर, मस्तिष्क पर सिंन्दूर, गुलाल, कुमकुम और फूल आदि चढ़ाए जाते हैं।
जन्माष्टमी के अवसर पर लोग राधा कृष्णा की पूजा भी करते हैं। यह पूजा मुख्यतः महिलाएं करती हैं, जो राधा कृष्ण की मूर्तियों को सजाकर उन्हें विभिन्न प्रकार की मिठाइयों और पकवानों का भोग लगाती हैं। इसके बाद इन मूर्तियों को गांव के तालाब या नदी में विसर्जित किया जाता है।

जन्माष्टमी महोत्सव में खेल और मनोरंजन

जन्माष्टमी पर्व के दौरान विभिन्न खेल और मनोरंजन के कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं। सबसे लोकप्रिय खेल ‘दही हांडी’ तोड़ है, जिसमें युवा लकड़ी या लड़के प्रतिभागी बन सकते हैं। यह खेल विशेष रूप से गांवों में बहुत उत्साह और उमंग के साथ खेला जाता है। इसके अलावा आंखों में पट्टी बांध कर गोल आकृति में रखी गई मट्का को दोनों बघल में लाइन को बिना टच किए मट्का के सामने जा कर डंडों से तोड़ना है, यह पारंपरिक खेल भी खेले जाते हैं, जो त्यौहार की रौनक को और बढ़ा देते हैं।
पारंपरिक पकवान
जन्माष्टमी के अवसर पर विभिन्न पारंपरिक पकवान भी बनाए जाते हैं। चावल, दाल, सब्जियों और विभिन्न प्रकार की मिठाइयों का विशेष महत्व होता है। सबसे प्रमुख भोग है दूध से बनाई गई दूध मलाई, जिसे दूध, शक्कर से बनाया जाता है। इसके अलावा माखन भी प्रमुख भोग में शामिल हैं। यह भोग घर की महिलाओं द्वारा बड़े प्रेम और लगन से बनाए जाते हैं और सभी परिवार के सदस्य मिलकर कन्हैया लाल जी को भोग चढ़ाएं जाते हैं।
हिंदू धर्म में है,यह
जन्माष्टमी का महत्व बहुत अधिक है। इस दिन गांव के लोग एक साथ मिलकर जन्माष्टमी महोत्सव को खूब हर्षोल्लास से मनाते हैं, जिससे आपसी भाईचारा और सामुदायिक भावना को बल मिलता है। यह त्यौहार सभी जाति, धर्म और वर्ग के लोंग मना सकते है चूंकि हिन्दू धर्म में एकजुट और समाज में एकता और समरसता का संदेश फैलाता है।

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