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देवभोग की सभी माताओं एवं बहनों ने संतान की खुशहाली के लिए मनाई पारंपरिक पर्व कमरछठ

देवभोग की सभी माताओं एवं बहनों ने संतान की खुशहाली के लिए मनाई पारंपरिक पर्व कमरछठ

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✍🏻”लोकहित 24 न्यूज़ एक्सप्रेस लाइव” जिला ब्यूरो चीफ– चरण सिंह क्षेत्रपाल की रिपोर्ट गरियाबंद (छत्तीसगढ़)

देवभोग की सभी माताओं एवं बहनों ने संतान की खुशहाली के लिए मनाई पारंपरिक पर्व कमरछठ

गरियाबंद–: -आज पावन तपोभूमि देवभोग में हरछठी व्रत को पूरी विधि विधान एवं आस्था और विश्वास से माता एवं बहनों ने पूजा अर्चना की। पूजा आराधना की पूरी वृतांत व्रती माताओं एवं बहनों ने बताई कि हरछठ व्रत भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि पर हरछठ व्रत किया जाता है। इस पर्व को हलछठ, बलदेव छठ,तिनछठी, और चंदन छठ, आदि के नाम से जाना जाता है। इस शुभ अवसर पर भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भ्राता श्री बलराम जी की विशेष पूजा अर्चना की जाती है।
हरछठ व्रत करने से क्या फल प्राप्त होते है

व्रत वती माता एवं बहनों ने बताई कि आज के दिन सच्चे मन से व्रत करने पर अपने संतान की सुख शांति और दीर्घायु की कामना के लिए हरछठ व्रत मनाई जाती है।
पंचांग के अनुसार भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि 24 तारीख को दोपहर में 12 बजकर 30 मिनट से आरंभ कि जाती है। तथा 25 अगस्त को सुबह 10 बजकर 11 मिनट पर समाप्त होगी।

पूजन विधि विधान
हरछठ व्रत पूजा अर्चना करने के लिए पूजन सामग्री दही, घी,दूध,फल फूल, नारियल, अगरबत्ती, सिंदूर,व जारी (छोटी कांटे दार झाड़ी)की एक शाखा पलाश की एक शाखा और नारी (एक प्रकार का लता) की शाखा को भूमि या किसी मिट्टी भरे गमले में गाड़कर पूजन किया जाता है।
हर छठ व्रत में भगवान बलराम भगवान विष्णु जी के 8 वें अवतार है, बलराम जी का प्रधान शस्त्र हल अर्थात नागर और मुशल है । इस लिए इस दिन हल षष्ठी, हरछठ या ललही छठ के रूप में मनाया जाता है। इसी लिए भगवान बलराम को हलधर के नाम से जाना जाता है। आज के दिन यह व्रत करने से जातक को श्रेष्ठ संतान और दीर्घायु की वरदान प्राप्त होती है। तथा अपनी संतानों को अरोग्य व ऐश्वर्य में वृद्धि होती है। इसी लिए आज देवभोग की सैकड़ों माता एवं बहनों ने शिवालयों में हरछठ व्रत की पूजा आराधना की गई। और विधि विधान पूर्वक हरछठ व्रत कथा प्रवचन सुनाई गई। तत्पश्चात व्रतधारी माता एवं बहनों ने भगवान विष्णु के आठवें अवतार बलराम जी को नेवैद्य फल फूल, दूध दही घी,भोग चढ़ाएं तथा संध्या को आरती उतारी की गई।

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